गौभक्त और संकट से गुजरते गाय–बैल / MUSAFIR BAITHA
और संकट से गुजरते गाय–बैल / MUSAFIR BAITHA
जुताई बुआई जबसे
होने लगी मशीनों से
बछड़े हुए जान के जवाल किसानों के लिए
जैसे कि बेटों की चाह वाले समाज में
नालायक बेटों से लोग
नाक में दम हुआ महसूस करते हैं
गाय माता तो एकदम अबोध
गौ होना मुहावरा तभी बना उसके नाम पर
जबकि इधर
नहीं चाहते गोभक्त भी
कि कोई गाय बैलों को जने
क्योंकि बैल अब उनके काम के नहीं रहे
आई गोवंश के बैलों पर शामत
कि स्वयंभू गौपुत्र पीछे पड़े हैं बेचारे बैलों के
मनुष्य के धर्म फेरे में पड़
सफ़ेद हाथी और हलाल हुआ बैल ज्यों
बूढ़ी बिसूखी गाय जो
भक्त मनुष्य की पवित्र माता है
धार्मिकों के लिए मुश्किल हुआ घर में रखना उसको
ज्यों बूढ़ी माएं रख दी जाती हैं वृद्धाश्रमों में धर्मसंकट विकट कि ये पवित्र धर्म–पशु
कसाई को भी कैसे बेचे जाएं
इधर, जान छुड़ाने को
धर्म को रख ताखे पर
चोरी चुपके बूढ़ी गायों को
कर आ रहे लोग
कसाई के हवाले
पाप पुण्य का गणित भुलाए!