*”गौतम बुद्ध “*
“गौतम बुद्ध”
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गौतम बुद्ध को श्री विष्णु जी का अवतार माना जाता है वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म हुआ था हिंदू धर्म के अनुसार महात्मा बुद्ध को सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु जी का नवां अवतार माना जाता है वही दूसरी ओर बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त कर बौद्ध धर्म की स्थापना की थी यही वजह है कि बौद्ध धर्म के अनुयायी गौतम बुद्ध को भगवान मानते हैं और पूरे हर्षोल्लास से उनके जन्ममहोत्सव को बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती महोत्सव के रूप मनाया जाता है।
इसी दिन कूर्म जयंती भी मनाई जाती है कूर्म याने -कछुआ ये भी विष्णु जी का ही अवतार है ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था तब भगवान विष्णु जी ने कछुए का रूप धारण कर अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को संभाला था और कछुए से ही मनुष्य जीवन की शुरुआत हुई है ऐसा कहा गया है।
गौतम बुद्ध के विचारों को समझकर हम विश्व शांतिपूर्ण तरीके से जीवन के अर्थ को समझ सकते हैं आज जहां पूरी दुनिया वैश्विक कोविड -19 महामारी से जूझ रहा है उन कोरोना के खतरे के बीच जीने की लड़ाई लड़ रहा है ऐसे में गौतम बुद्ध के दिये गए सात्विक विचारों से हम जीवन मे यथार्थवादी की ओर से जाकर उनकी कही गई बातों विचारों को अमल में ला सकते हैं जिसे जानने व समझने के बाद हम विश्व शांति एवं एक उम्मीद हौसला बढ़ा सकते हैं।
गौतम बुद्ध को जब ज्ञान प्राप्त हुआ था तो सात दिन तक चुप मौन धारण कर लिया था जैसे उनके शांतिपूर्ण वातावरण भी इतनी मधुर रसपूर्ण थी जैसे रोआं रोआं नहाकर सरोबार हो गया हो उन्हें बोलने की इच्छा ही नही जागी कुछ बोलने का भाव ही पैदा नही हुआ कहते हैं कि सारी सृष्टि देवलोक थरथराने लगा था।
कल्प बीत जाते हैं हजारों वर्ष बीतते हैं तब कहीं जाकर कोई मनुष्य बुद्धत्व की उपलब्धि हासिल करता है उच्च शिखर से बुलावा न दे तो अंधेरी रात घाटियों में मनुष्य भटकते रहता है और उन्हें उच्च शिखर की खबर न मिलेगी तो वे आंखे बंद किये बैठे ही रहेंगे गर्दन उठाकर देख भी न सकेंगे वस्तुतः वे चलते नही सरकते हैं रेंगते हैं।
देवगण भी सुखी होंगे अभी मुक्त नही मोक्ष से दूर हैं अभी लालसा भी खत्म नही हुई अभी तृष्णा भी नही मिटी अभी जिज्ञासु पिपासा नहीं मिटी थी और उन्होंने एक सुखद आश्चर्य अनुभव से मानो सारा संसार पा लिया है ….! !
बुद्ध पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई इसी दिन महानिर्वाण भी हुआ था बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी तभी से बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
गौतम बुद्ध के उपदेश आज भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है उन्होंने आधात्मिक क्षेत्र में महत्व देते हुए कहा था “जिस प्रकार मोमबत्ती बिना आग के जल नहीं सकती उसी तरह वैसी ही मनुष्य का जीवन आधात्मिक ज्ञान के बिना अधूरा ही है’
*बूंद बूंद से घड़ा भरता है इसी तरह बुद्धिमान व्यक्ति थोड़ा थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर खुद को अच्छाई के सद्गुणों से भर लेता है।
*आपके पास जो भी है उसे बढ़ा चढ़ाकर नही बताना चाहिए और न ही दूसरों से ईर्ष्या द्वेष नहीं रखना चाहिए जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नही मिलती है।
*क्रोध को पालने रखना जलते हुए कोयले को किसी अन्य पर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने के समान ही है इसमें खुद स्वयं ही जलते हैं।
*तुम अपने क्रोध के लिए दंड नही पावोगे बल्कि तुम अपने क्रोध के द्वारा ही दंड पावोगे।
*विवेक व बुद्धि से सोच विचारकर काम करें जो कार्य पहले जरूरी है उसे पहले प्रथमिकता दें अगर हम जरूरी कार्य छोड़कर अन्य दूसरे कार्य में व्यस्त हो जाते हैं तो वह जरूरी कार्य अधूरा ही रह जाता है और समय व्यर्थ चला जाता है अर्थात सभी कार्य त्यागकर प्राणी मात्र की ही रक्षा करें।
*यदि कोई हमारी प्रंशसा करे तो फुले नही समाना चाहिए ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए और यदि कोई निंदा करता है तो भी उदास नही होना चाहिये बल्कि उन कही गई बातों को चिंतन मनन कर शांतचित्त से अंतर्मन में उतारना चाहिए ये कटु वचन आलोचना सत्यता की ओर ले जाती है और ऐसा व्यक्ति सदैव जीवन में आंनद पूर्वक रहता है।
जीवन में सबसे बड़ी कला स्वयं को वश में रखना है आत्म नियंत्रण जब सध जाता है तो समभाव आ जाता है और यही समभाव अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों से हमें अवगत कराता है ।
*हम जीवन में छोटी छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ बैठते हैं और उनसे निपटने के बजाय तकलीफ उठाते रहते हैं जबकि जरूरत है कि बगैर समय गंवाते हुए उन मुसीबतों का सामना डट कर करें और जब ऐसा करेंगे तो कुछ समय में ही बड़ी समस्या याने चट्टान जैसे दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से ठोकर मारकर आगे बढ़ सकते हैं …..! ! !
*मन सभी प्रवृतियों का अगुआ है मन उसका प्रधान है ये मन से ही उत्पन्न होती है यदि कोई दूषित मन से वचन बोलता है या कोई भी पाप करता करता है तो दुःख उसका अनुसरण कर उसी प्रकार प्रगट करता है जिस प्रकार बैलगाड़ी खींचने वाला बैलों के पैर को खींचता है।
वैसे ही व्यक्ति का किया गया पापकर्म अपना फल देने के समय तक उसके पीछे पीछे लगा रहता है।
गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश में इन सभी बातों का उल्लेख किया है लोगों को अहिंसा परमो धर्म का रास्ता दिखलाया था उन्होंने जीवन में दुःख के कारण एवं निवारण के लिए आष्टांगिक मार्ग सुझाया था।
आष्टांगिक मार्ग –
1. सम्यक दृष्टि – (अंधविश्वास तथा भ्रम से रहित)
2. सम्यक संकल्प – (उच्च तथा बुद्धियुक्त)
3.सम्यक वचन – (नम्र ,उन्मुक्त, सत्यनिष्ठ)
4.सम्यक कर्मान्त – (शांतिपूर्ण ,निष्ठापूर्ण, पवित्र
5.सम्यक आजीव – (किसी भी प्राणी को आघात या हानि नहीं पहुँचाना )
6.सम्यक व्यायाम – (आत्म प्रशिक्षण, व आत्म निग्रह हेतु)
7.सम्यक स्मृति – (सक्रिय सचेतन मन )
8.सम्यक समाधि – (जीवन की यथार्थता पर गहन अध्ययन )
चार अर्थ सत्य भी बतलाये हैं ;-
1.दुःख है
2.दुःख का कारण
3.दुःख का निदान
4 .वह मार्ग जिससे दुःख का निदान होता है।
गौतमबुद्ध के इन सदविचारों को जीवन में अमल में ला सकते हैं।
आज विकट परिस्थितियों से हम सभी मिलकर निपटा सकते हैं यदि आज हम सभी एक दूसरे की सहायता करेंगे तो कोरोना जैसे वायरस को इस विपत्तियों से मुक्त कर सकते हैं किन्तु यदि हम सभी मिलकर मदद नहीं करेंगे तो जीवन भर हमारी सहायता करने को कोई तैयार नहीं होगा याद रखिये विपत्ति में फंसे हुए लोगों की मदद करना सबसे बड़ा धर्म है।
पूरे विश्व में कोरोना वायरस के आंतक से जूझ रहा है हम सभी देशवासियों के सहयोग व प्रयास से महामारी रोग से छुटकारा मिल सकता है ………! ! !
गौतम बुद्ध ने भी बूढ़े वृद्ध जनों को देखकर ही उनके अंर्तमन में सवाल उठ खड़े हुए थे और इसी जन्म – मृत्यु के बीच का फासला की कड़ी को सुलझाने के लिए ज्ञान हासिल करने की खोज में अपने पूरे परिवार को छोड़कर सन्यास ले लिया था और बोधि वृक्ष के नीचे अदभुत ज्ञान प्राप्त किया था उनके मुँह से जो शब्द निकला था ….
“बुद्धम शरणम गच्छामि”
अर्थात प्रभु के शरण में आकर सारे सवालों का जवाब मिल जाता है और ईश्वर क्या है …..?
इसे मंदिर, मस्जिद , गुरुद्वारे , चर्च में जाकर नहीं बल्कि ये अपने अंतर्मन में स्वयं हृदय द्वार में खोजें आत्मज्ञान हासिल कर सकते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा अर्थात बुद्धि का विकास अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने वाली सुनहरी किरणें जो जीवन में सुखद आश्चर्य अनुभवों से विचारों से अवगत कराता है ………! ! !
शशिकला व्यास
भोपाल मध्यप्रदेश