गोधरा
7. गोधरा
ये धरा गोधरा मत बनाओ ,
भूखे तन पर कफन मत उढ़ाओ ।
गंगा जमुना कि ये सरज़मी है ,
गौरी गज़नी यहाॅ मत बुलाओ ।
ये धरा गोधरा मत बनाओ ।
भाईचारा हो लक्ष्मण के जैसा ,
भेष मारीच का मत बनाओ ।
मिल रहें हैं यहाॅ दिल युगों से ,
इनमें दूरी न अब तुम बढ़ाओ ।
ये धरा गोधरा मत बनाओ ।
तीन नदियों का संगम यहाँ है ,
तीन धर्मों का संगम बनाओ ।
एकता है अभी भी दिलों में ,
पर इसे राहजनों से बचाओ ।
ये धरा गोधरा मत बनाओ ।
शीश सिंहों ने जिसपर लुटाये ,
गीदड़ों से उसे अब बचाओ ।
जो भरत सिंह शावक से खेले
उस भरत को धरा पर बुलाओ ।
ये धरा गोधरा मत बनाओ ।
एक दिल एक जॉ एक तन है ,
फिर न कपड़े अलग तुम सिलाओ ।
एक चूल्हे पे रोटी बनाकर ,
हम तुम्हे तुम हमें खुद खिलाओ ।
ये धरा गोधरा मत बनाओ ।
काशी मथुरा अयोध्या की छोड़ो ,
तान हिन्दोस्ताँ की सुनाओ ।
तुम ये सारा जहाँ हम से ले लो ,
बस दिलों को दिलों से मिलाओ ।
ये धरा गोधरा मत बनाओ ।
एकता हो अटल इस वतन की ,
राम बनके कलाम आज आओ ।
एक उंगली पे लेकर सुदर्शन ,
शान्ति की बात जग को बताओ ।
ये धरा गोधरा मत बनाओ ।
प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)