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9 Feb 2024 · 1 min read

*गैरों सी! रह गई है यादें*

गैरों सी! रह गई है यादें

वक्त किस कदर बदल गया
फूलों को देखकर भी
मुस्कुराना कम हो गया
उदासी सी! रह गई है जिंदगी में
अपनों अब आना -जाना
भी कम हो गया।

थकी -हारी सी रह गई है बातें
बेरंग सी हो गई है मुलाकातें
इस शान शौकत की दुनिया में
गैरों सी -! रह गई है यादें।

अपने- अपने सपनों का
पिटारा लिए घूमते हैं
कुचल के अपनों की खुशियां
दूसरों में खुशियां ढूंढते हैं
वक्त की मार से तड़प कर
अपनों का कंधा ढूंढते हैं।

हरमिंदर कौर, अमरोहा (उत्तर प्रदेश)

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