गृहे गृहे यज्ञ (चौपाई छंद)
चौपाई छंद
मृत्युल़ोक पर संकट आया*देश देश कोरोना छाया।
देव दनुज धर मानव रूपा*निज कृत कर्म करहिं ज्यों भूपा।
रूप रंग पहचान न होई*धर्म कर्म नहिं मानत कोई।
होहिं अचंभित सब नर नारी*केहि अपराध मनुजता हारी।
जिनको मानत देव सुजाना*वही शराबी दनुज पुराना।
भीड़भाड़ का देख नजारा* लगता कोरोना मिल मारा।
लाँकड़ाउन तोड़ नर नारी*भूलहिं वायरस महामारी।
देवालय भूले सब भाई*मदिरालय की करत बढ़ाई।
करहिं मर्याद न लोग लुगाई*मादिकता सब के सिर छाई।
मनुज रूप धर सुर मुनि नाना*गगन मार्ग चढ़ चलहिं विमाना।
धरा बसत राक्षस परिवारा*मदिरालय पर भीड़ अपारा।
सब आपस में करहिं विचारा*मानव कुल अब नहिं उद्धारा।
हुए उदास देख नर लीला*सुमिर अबधपति करूणाशीला।
राक्षस कुल पाया विस्तारा*केहिं बिधि सज्जन हो निस्तारा।
सोच सोच मन हुआ दुखारी*नारद बोले समय विचारी।
हरि सन विनय करें हम जाई*आन उपाय न सूझें भाई।
सब मिल गये विष्णु के लोका*नाथ हरऊँ धरा मन शोका।
मानव जीवन देख नजारा*प्रभु आवश्यक तव अवतारा।
एवमस्तु कह सबहिं समझावा*अदृश्य रूप मुझें मन भावा।
बदल रूप प्रज्ञा अवतारा* करिंहों दूर संकट भू भारा।
निर्भय हो अपने गृह जाई*गृह गृह यज्ञ करो तुम भाई।।
राजेश कुमार कौरव “सुमित्र”