गुल चाहता है
मैं चाहता हूँ
गुल चाहता हूँ न गुलिस्तान चाहता हूँ।
वंचितों के ओठों पे मुस्कान चाहता हूँ।।
चहूँ ओर गूंजते हैं मजहबी नारे,
मैं भंवरों के मधुर गान चाहता हूँ।।
जो जाति-धर्म की दरो-दीवार तोङ दे,
लोक हित में ऐसा फरमान चाहता हूँ।।
छल-कपट जहां से समूल नष्ट हो जाए,
चहकता-महकता जहान चाहता हूँ।।
बुजुर्गों का आशीर्वाद बना रहे सदा,
बहू-बेटियों का सम्मान चाहता हूँ।।
हक से सिल्ला’ न कोई भी महरूम हो,
फलता-फूलता भारत महान चाहता हूँ।।
-विनोद सिल्ला©