गुरु महिमा
गुरु महिमा (दुर्मिल सवैया)
गुरु ब्रह्म समान महान सुजान विधान सुचालक ज्ञान भरें।
अरुणोदय मोहक भाव प्रकाश सदा तिमिरांचल नष्ट करें।
शिव मानव -सा रमते रहते चलते कहते गुरु ज्ञान- कथा।
नित बोध करावत अर्थ बतावत शब्द सिखावत भाव यथा।
जब पूछत शिष्य कभी कुछ प्रश्न सप्रेम गुरू समझावत हैं।
गुरु शांत स्वभाव मनीष मुनीश दिवाकर लोक दिखावत हैं।
अति नम्र विनम्र सुसभ्य पुनीत विचारक संत महा गुरु हैं।
शुभ सत्य सुधा सम गंग धरा पर शीतल नीर सदा गुरु हैं।
कथनीय नहीं गुरु की महिमा गुरु दिव्य प्रकाश पुरोहित हैं।
गुरु के बिन मोक्ष मिले न कभी वह व्योम अनंत सदा हित हैं।
वह विष्णु अनादि सुपात्र सुरम्य विवेक प्रियंवद धर्म महा।
वसुधा तब शोभित है जग में गुरु मंत्र प्रदत्त प्रशांत जहां।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।