*गुरु महिमा (दुर्मिल सवैया)*
गुरु महिमा (दुर्मिल सवैया)
गुरु की गरिमा महिमा अति पावन सावन सोम यथा ग़मके।
दिखते लगते कहते रहते उपदेश महान सदा चमके।
प्रिय अमृत शब्द स्वभाव मनीष लगे जिमि ब्रह्म सदा दमकें।
अति मोहक मानव ज्ञान निधान सदा गुरु काव्य कहें रस के।
गुरु श्रेष्ठ महान सुजान वसिष्ठ विशिष्ट विधान सदा रचते।
दिनमान तपोनिधि दिव्य जहान सदा शिव ज्ञान दिया करते।
अति शीतल चंद्र समान सुधाकर ज्योति बने विपदा हरते।
शुभमान प्रतिष्ठित यज्ञ बने शिशु का उर शुद्ध किये चलते।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।