गुरु तुम क्या हो यार !
एक बच्चा कल्पनाओं के ढेर में बैठा हुआ सोचता है।
गुरु तुम क्या हो यार…
तुम्हारा यू कार्य न करने पर डाटना,
सबके सामने फटकारना,
हमारे स्टेटस सिंबल को लज्जित करता है, यार…
गुरु तुम क्या हो यार…
तब में आज आपके सामने कविता की कुछ पंक्तियां से एक आदर्श गुरु का चित्र आपकी आंखो में देखना चाहता हूं। मै पक्तिया निवेदित करता हूं , आशीर्वाद दीजिएगा।
गुरु ज्ञान की मूरत है,
सच्चाई की अदभुत सूरत है।
गुरु सुलगती धूप की शीतल छाव है,
तो हिमपात की लुभाती उष्ण हवा है।
गुरु संस्कार की जलती ज्योत है,
तो जहरीली हवाओं का रोध है।
गुरु भवसागर की नाव है,
तो आदर्शता का विशाल जन विश्वास है।
गुरु ज्ञान है,
ज्ञान ही गुरु का सामान।
:- जय हिन्द
©Jaswant lakhara
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