गुनाह
प्यार मुहब्बत हो गइल, भइया आज गुनाह।
आशिक की मुँह से सदा, निकलत देखीं आह।।
दिल तहरा से जोड़ि के, बड़का भइल गुनाह।
हमके हमरी हाल पर, छोड़ि बदल लऽ राह।।
दिल तोड़ल दिलदार के, बड़का हवे गुनाह।
जिनगी सँग निभवल करऽ, जिनकर कइलऽ चाह।।
तहरी दिल में का हवे, लागत नइखे थाह।
चैन न तहरो के मिली, निकली जब-जब आह।।
माफी के लायक कहाँ, हुउए इहो गुनाह।
जे देले बा जिंदगी, उनकर मत लीं आह।।
जीवन में माँ बाप के, निकले मत दीं आह।
माई के आँसू गिरल, बड़का भइल गुनाह।।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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