गुनाह मेरा था ही कहाँ
गुनाह मेरा था ही कहाँ
जिसे हर पल आपने कुबूल करने पर मजबूर किया,
दोष मैंने किया ही क्या था जिसके कारण आपने सदा ही मेरा तिरस्कार किया।
प्रतीत होता है एक मेघदूत का प्रयोजन मुझे भी है,
जो मेरी सिफारिशों को आप तक पहुंचा सके,
एक पल खामोशी की आवश्यकता मुझे भी है ,
जो मुझ तक मेरे लव्सों का प्रकाशन करने में मेरी सहायता कर सके ।
मेरी कथोपकथन की अदा को समझना अब मेरे स्वयं की बस की भी बात नहीं।