गीत07
गीत
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कारा तोड़ निकल रे कैदी ,
अम्बर में मधु भोर खिली है ।।
टहनी पर आकर गौरैया,
दिन से पहली बार मिली है ।।
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जीवन के झूठे द्वन्दों में ,
कहाँ बचे अनमोल खजाने ।
सूख गया नयनों का पानी ,
घुन से हुए खोखले दाने ।
सम्हल पवन का मित्र न बनना ,
पवन आज की नहीं भली है ।।
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रात ठिठुरती बाखल बाखल ,
बच्चों के हैं भारी बस्ते ।
वेदनाओं के ज़हर मिले सब ,
निष्ठुरता के लड्डू सस्ते ।
सावधान होकर चलना तू ,
मुठ्ठी में अधखिली कली है ।।
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भय के भूत भले हों लेकिन ,
हिम्मत के हनुमान साथ ले ।
सफर कठिन है तो क्या पगले ,
निर्भयता का बान साथ ले ।
दीवालें जितनी पक्की हों,
अपना मन ही महाबली है ।।
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@श्याम सुंदर तिवारी