गीत06
गीत
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घर माटी का औऱ पूस की रात ।।
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कैसे आग जलाएँ घर में ,
बरफ पड़ी निर्जन अम्बर में ।
सीना तान तिमिर हँसता है,
आधी मजदूरी दिन भर में ।
डर राजा का और बाज की घात ।।
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टूटी खटिया फटी रजाई,
फूटी पड़ती रोज रुलाई ।
बिना दूध के मुनिया रोती,
मन में बसी मुराद बिलाई । दृग पहुंचें सपनोँ कहाँ बिसात ।।
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बहुरेंगे दिन पता नहीं है,
अंगारों पर राख जमी है।
गलियों में कुत्तों का डर है,
नयनों में जम रही नमी है।
दूब हुई तर मुई शीत बदजात ।।
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श्याम सुंदर तिवारी