गीत 28
गीत
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इस नदी की व्यथाओं को,
कौन समझेगा ।।
शिराओं में नहीं सूरज,
गली में रह गई गोरज,
पत्थरों के जंगलों में,
कौन पनपेगा ।।
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अनमना मन तनी है,
तीखी दोपहरी ।
फड़फड़ाता ढूंढता,
शुक छाँव गहरी।
कब उठेगा चाँद शीतल,
गगन दमकेगा ।।
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अभी रख जीवन,
उमंगों में।
आस अंकित कर,
तरंगों में।
गूँजती है धमनियों में भी ऋचाएँ,
देखना नव सूर्य चमकेगा ।।
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इस नदी की व्यथाओं को, कौन समझेगा ।।
@श्याम सुंदर तिवारी