गीत 27
गीत
हमने तीरथ किए ,
आपने की है तीरन्दाजी ।।
🌹🌹
सह कर दीवारों की सख्ती ,
दांसे पर रहते हम ।
खाकर बासी रोटी ,
आधा पेट मारते हैं दम ।
जीवन हुआ अधीरथ जैसा ,
हारे हैं हर बाज़ी ।।
🌹🌹
नई पतोहू बनी द्रौपदी ,
तोड़ चुकी है कंगन ।
हुआ मोतियाबिंद सास को ,
अब मंदिर की मंगन ।
लिखता है अखबार कहानी ,
कहता सबसे ताज़ी ।।
🌹🌹
उल्टी चलीं हवाएँ ,
केवल मन के दिन ही बदले ।
बीजों से फूटे जहरीले ,
बेले बढ़कर छिछले ।
बाँट रहे राहत की थैली ,
जो हैं पक्के नाज़ी ।।
**
श्याम सुंदर तिवारी