गीत 25
गीत
————————
टूटे अपनेपन के दरपन ,
मन के सपने रेत हुए ।।
आशाओं के सजग सिपाही ,
एक एक कर खेत हुए ।।
🌹🌹
सम्बन्धों के गाँव उजड़ते ,
कुटिल कपट के शहर बसे ।
भागा वक्त कुचल मुस्कानें ,
अश्व मिलन के जीन कसे ।
रूठे होरी के हुरियारे ,
बिन मजदूरी चैत हुए ।।
🌹🌹
सगे सहोदर ही बिलमे हैं ,
बाजारों बीमारों में ।
कहाँ निरापद रहता जीवन ,
भुनता है अंगारों में ।
प्रेमनगर के सारे वासी ,
गली गली अनिकेत हुए ।।
🌹🌹
नदी भोर की थकी हुई सी ,
मिली साँझ के सागर में ।
तट पर बँधी नाव ठहरी हो ,
जैसे छोटी गागर में ।
मधु मिठास के स्वाद सभी हैं ,
तिक्त नीर समवेत हुए ।।
🌹🌹
©श्याम सुंदर तिवारी