गीत 23
गीत
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धीरज का कर थाम चलाचल ,
चिरप्रकाश भर दीप जलेंगे ।।
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मेघों का जमघट द्वारे पर ,
गिरि के पार किरन सोई है ।
तोड़ हताशा के ये बन्धन ,
अम्बर ने आँखें धोई हैं ।
गोरज माथे पर रख लेना ,
निशि के कठिन शैल पिघलेंगे।।
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कुंठित काल हुआ है कलुषित ,
वेदनाएँ विषधर सी डसतीं ।
मन के सभी मकान खोखले ,
जर्जर टूटी नीवें धँसती ।
चलताचल बस पथ लम्बे हैं ,
आगे मीठे स्रोत मिलेंगे ।।
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निर्णय के पल बहुत विरल हैं ,
द्वन्दों के दानव हर उर में ।
खेत खेत बस्ती बस्ती में ,
जागा हरा रंग अंकुर में ।
दमन गिरेगा औंधे मुँह फिर ,
शमन अमन दो पुष्प खिलेंगे ।।
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©श्याम सुंदर तिवारी