गीत 20
गीत
————————
मैं फ़क़त हूँ दूर दो ग़ज़
टूटती सम्वेदना से ।
और तुम पत्थर लिए हो हाथ में ।।
🌹🌹
बुद्धिजीवी शहर का यह ,
सभ्यता ओढ़े समाज ।
इस सियासी जंग में ,
सुखबीर के सँग है सिराज ।
मैं फकत हूँ दूर दो ग़ज़ ,
चल रही अभ्यर्थना से ।
और तुम खंजर लिए हो हाथ में ।।
🌹🌹
कल तलक थे किले ऊँचे ,
आज हैं अवशेष केवल ।
कह रहा इतिहास जिनकी ,
कथाएँ विचित्र अविरल ।
मैं फ़क़त हूँ दूर दो ग़ज़ ,
स्मृति की वेदना से
और तुम विषधर लिए हो हाथ में ।।
🌹🌹
©श्याम सुंदर तिवारी