गीत 18
गीत
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उम्र भर खटती रही
वह पुरानी साइकल ।
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आज भी डटती नहीं
वह पुरानी सायकल ।
पिता सँग जाती रही
गाँव के स्कूल में ।
क ख ग रटती रही
वह पुरानी सायकल
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बचपन बैठा रहा
साथ छोटी सीट पर ।
रातों में दौड़ती
भागती स्ट्रीट पर।
तिल तिल मिटती रही
वह पुरानी साइकल ।।
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पिता थे तब तक
बहुत खुश थी
रही दालान में ।
जब भी घर लौटती ,
घर उठा
सम्मान में ।
प्यार में बँटती रही,
वो पुरानी सायकल ।।
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©श्याम सुंदर तिवारी