गीत 17
गीत
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श्वेत श्याम तस्वीरों में स्पंदन है ,
वही पुराना गाँव आज भी नन्दन है ।।
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बरगद कटे मिटी चौपलें ,
चली गईं शतरंजी चालें ।
सब कुछ बिखरा फिर भी
पकती एक देगची सबकी दालें
गाँव आज भी जनकपुरी सा
मन अपना रघुनन्दन है ।
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जीवन का अनुवाद हुआ ,
पर संस्कार बहते रग में ।
जोड़े हाथ खड़े रहते हैं ,
नमन प्रणाम यहीं मग में ।
हर घर में हैं कुंजबिहारी ,
जिनके माथे चन्दन है ।।
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दूर देश में रहते बच्चे
स्मृतियों में गाँव बसा ।
स्याले के दिन कथरी ओढ़े
रामू काका खूब हँसा
मन के पथ पर दौड़ लगाते
बस यादों के स्यन्दन हैं ।।
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©श्याम सुंदर तिवारी