गीत 16
गीत
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भौतिकता के गहन वनों में,
खोए खोए लोग ।।
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चाँदी की चमकीली आँखें ,
सोने के सब दाँत ।
लकदक कपड़े हैं रेशम के ,
सुरा नहाई रात ।
सबसे छिपकर रूमालों में ,
रोए रोए लोग ।।
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सच के आँसू झूठा हँसना ,
जीवन बदरंग शाम ।
असल नहीं व्यक्तित्व रहा अब ,
रहा नाम ही नाम ।
घर के बाहर नहीं निकलते ,
बहुत सताए लोग ।।
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अब तक खोए रहे स्वप्न में ,
दिखा न असली रूप ।
आँखें खुलीं टूटकर बिखरे ,
जाना कितनी धूप ।
रोज निचुड़ते हैं सड़कों पर ,
स्वेद नहाए लोग ।।
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©श्याम सुंदर तिवारी