गीत 15
गीत
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नयी सुबह से स्वप्न तुम्हारे,
मेरा अनुभव बरसों का ।
मैं जमीन सिंचित फसलों की ,
तुम पराग हो सरसों का ।।
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महीने बरस कठिन युग बीते,
पाले सी दुविधा भोगी ।
संघर्षों में जीवन निकला ,
बना दिया जिसने जोगी ।
तुम हो ताज़ा फूल शबनमी ,
मैं सूखा गुल हूँ परसों का ।।
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यह सफर रहा कण्टकपूरित ,
बिन बरखा बादल बरसे हैं ।
हर मोड़ गुलाबी थी दुनिया ,
हम गुल खुशबू को तरसे हैं ।
तुम धानी सूरज प्राची का ,
मैं सांध्य रंग उत्कर्षो का ।।
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©श्याम सुंदर तिवारी