गीत ०५
नवगीत
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एक हफ्ते में मिली बस चार दिन ।।
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पले कैसे पेट इस ,
आधी मजूरी में ।
तीन दिन जाया हुए
हैं जी हजूरी में ।
क्रोध में कमली कहे तू पेड़ गिन ।।
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सुमन बेटी आ गई ,
त्यौहार राखी का ।
गीत गाती है वही ,
फिर उड़न पाखी का ।
दूध आएगा कहाँ से गाय बिन ।।
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उग रहा सूरज मगर ,
तम से नहीं लड़ता ।
वन्दनाएँ बेअसर ,
मन में जमी जड़ता ।
छीन लिए वक्त ने सुनहरे पल छिन ।।🌹🌹
©श्याम सुंदर तिवारी
खण्डवा मध्यप्रदेश