गीत रीते वादों का …..
गीत रीते वादों का ……
मैं गीत हूँ रीते वादों का , मैं गीत हूँ बीती रातों का।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
हर मौसम ने उस मौसम की,
बरसातों को दहकाया है ।
बीत गया जो मौसम दिल का,
लौट के फिर कब आया है ।
जश्न मनाता हूँ मैं अपनी , भीगी हुई मुलाकातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
,
उसके मीठे सपनों ने फिर,
पलकों में जश्न मनाया है ।
निशा के घोर अंधेरे ने,
इस दिल को बहुत डराया है ।
अवचेतन में साँसें लेता , मैं रूठा गीत प्रभातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
वो दर्द तड़पती रातों के ,
आँखों से बह बह जाते हैं ।
वो जख्म बरसती बातों के ,
यादों के दीप जलाते हैं ।
अन्तस में धधकी ज्वाला का, तूफान हूँ मैं जज़्बातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका, वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
सुशील सरना /
मौलिक एवं अप्रकाशित