गिरे हुए
मजदूर
दिन भर गड्ढा खोदता है
पसीना बहाता है
वह गिरा हुआ नहीं है
वह अपनी मेहनत का मूल्य पाता है
वैश्या
टाँगे फैला कर
ग्राहकों को निपटाती है
वह गिरी हुई नहीं है
वह अपने शरीर का मूल्य पाती है
धोबी का गधा
पीठ पर कपड़ों की गठरी लाद
नदी तक ले जाता है
थक कर चूर हो जाता है
लेकिन शाम को मालिक उसे
खाने को भरपूर खली चूनी देता है
इस प्रकार गधा भी अपनी मेहनत का
उचित मूल्य पा जाता है
एक हिंदी का लेखक ही है
जो दिन रात मेहनत से रचनाएँ लिखता है
फिर अपनी किताब प्रकाशित कराने के लिए
खुद ही पैसा लगाता है
इन्हें अपनी मेहनत का मूल्य नहीं मिलता
ये गिरे हुए हैं
मजदूर वैश्या और गधे से भी ज्यादा।