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11 Jun 2022 · 1 min read

गिरते-गिरते – डी के निवातिया

गिरते-गिरते

हम कहाँ से कहाँ आ गए गिरते-गिरते,
जग सारे में सारे छा गए गिरते-गिरते !!
!
काबिल जरा न थे जो जहन्नुम के भी,
जन्नत यहां पर पा गए गिरते-गिरते !!
!
इज़्जत से, लहजे से, दिलो से भी गिरे,
बेगैरत शोहरत कमा गए गिरते-गिरते !!
!
कोई नजरों से गिरा तो कोई उसूलो से,
गिरने में भी लुफ्त ठा गए गिरते-गिरते !!
!
गिरने के हुनर में इतने लायक निकले,
वतन भी नोचकर खा गए गिरते-गिरते !!
!
नाम और शोहरत से गए तो क्या हुआ,
बेशुमार दौलत तो पा गए गिरते-गिरते !!
!
गिरने की ऐसी आदत पाली कहते ‘धरम’
गिरने में भी क्रांति ला गए गिरते-गिरते !!
!
डी के निवातिया

1 Like · 2 Comments · 476 Views
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