” गाली-गलोज का नोबेल पुरष्कार “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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नेता पहले भी हुआ करते थे ! उनलोगों की शालीनता ,माधुर्यता ,शिष्टाचार उनके भाषणों में ही नहीं छलकते थे अपितु उनके व्यवहारों में भी परिलक्षित होते थे ! भाषा ,शैली और व्यंगों के मधुर रागों से हम भारत ही नहीं विश्व के नेताओं को आज भी इतिहास याद करता है ! नेहरु के ओजस्वी भाषण का अंदाज ,व्यंगों में शालीनता ,विपक्षिओं से मेल जोल की प्रतिभा को हम आज भी याद करते हैं ! युवा नेता अटल जी को सम्मान देना कोई उनसे सीखे ! आज अटल जी को भी भारत के घर घर में आदर के साथ याद किया जाता है ! उनके भाषणों में हमें शालीनता का समावेश मिलता है ! लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे ! इंदिरा को उन्होंने ‘दुर्गा ‘कहा था ! विचारों में भले ही मतभेद हो परन्तु सारे के सारे पहले के नेता अपनी मर्यादाओं के सीमाओं को नहीं लांगते थे पर विगत चार वर्षों से कुछ दृश्य ही बदल गए ! भाषणों में कौन कितनी गलियां दे सकता है ! कौन कितना व्यक्तिगत प्रहार कर सकता है ? पता नहीं यह संक्रामण सारे विश्व में फैल गया है ! अमेरिका और नार्थ कोरिया पहले तो अश्लीलता पर उतर आये थे अब आपस में हाथ मिला रहे हैं ! दरअसल यदि गाली -गलोज का सर्वोतम पुरष्कार विश्व स्तर पर दिया जाता तो अमेरिका और भारत के अलावे शायद ही कोई जीत पाता ?
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका