” गाँव हमारा प्यारा है “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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जी बहुत भर गया है शहरों से
जी बहुत भर गया है शहरों से
अब तो अपने गांवों की याद आने लगी !
कोई अपना ना मेरा बन सका
कोई अपना ना मेरा बन सका
हमें तो अपनी मित्रता की याद आने लगी !
घर में तो हम ऐसे ही कैद हुए
घर में तो हम ऐसे ही कैद हुए
दीवारें अपनी आँखें फाड़ कर हंसने लगी !
किस -किस से हम बातें करेंगे
किस -किस से हम बातें करेंगे
भाषाएँ उनकी हमको रोज भरमाने लगीं !
बच्चे ,बहु से घर सुना पड़ा था
बच्चे ,बहु से घर सुना पड़ा था
कभी एक साथ देखने की चाहत होने लगी !
याद आने लगी हमारे गांवों की
याद आने लगी हमारे गांवों की
लगता हैअपनी मिटटी गांवों की बुलाने लगी !
खेत खलिहान की वाहें मुझको
खेत खलिहान की वाहें मुझको
स्वप्नों में भी अपने आगोश में हमें लेने लगीं !
हमें तो रोटी सागअच्छे लगते हैं
हमें तो रोटी सागअच्छे लगते हैं
प्यार की ही बातों से प्यास सारी बुझने लगी !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
भारत