गाँव री सौरभ
गाँव री सौरभ
गाँव री सौरभ रग-रग में समाई,
जठै ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।
पीपल-बरगद-नीम री घणेरी छाया,
जठै प्यारो बचपन बितायो,
बाल सखा सागै खूब पींगां चढाई।
जठै ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।
पनघट माथे सखिया री टोली,
बोले बतळावे करे हंसी ठिठोली,
पानी री गगरी कमर लटकावे, माथे चढाई
जठे ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।
कोयल री कूँकती मीठी बोली,
रंग-बिरंगी इन्द्रधनुषी होली,
फूलों रे चमन सी महक आई।
जठे ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।
ताल-तलैया मायं कमल खिलतां,
आथूणे सूरज री लालिमा पाणी दीठे ,
निरमल गांव री भोर सुहावणी।
जठे ई देखूँ, देवे पग – पग दिखाई।
बळदां रे गळा बाजती घंटियाँ,
खेता में नाचती फूटरी परियाँ,
रूप-यौवन री अणूती मस्ती छाई।
जठे ई देखूँ, देवे पग-पग दिखाई।
मनमोवणा चितराम, लेहरावे धान,
मनमौजी घणा हैं गाँव रा किसान,
स्हैर री लागे वठै फ़ीकी मिठाई।
जठे ई देखूँ, देवे पग-पग दिखाई।
गाँव री सौरभ रग -रग में समाई,
जठे ई देखूँ, देवे पग-पग दिखाई।
हरीश सुवासिया
आर.ई.एस.
देवली कलां (पाली)