ग़ज़ल __गुलज़ार देश अपना, त्योहार का मज़ा भी ,
आदाब दोस्तों ,,,🌹🥰
दिनांक ,,,,11/08/2024,,,,
बह्र,,,,,,221 – 2122 – 221 – 2122,,,
काफ़िया __ आर,,, //रदीफ़ __ का मज़ा भी ,,,
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🎈 गज़ल 🎈
1,,,,
गुलज़ार देश अपना, त्योहार का मज़ा भी ,
बरबाद हो रहा है , व्यवहार का मज़ा भी ।
2,,,
सब ढल गये हैं औरों के रंग में यहाँ पर ,
भूले हुए हैं सब ही , संस्कार का मज़ा भी ।
3,,,
जिस प्यार को हैं कहते, ये प्यार ज़िन्दगी का,
लज्ज़त तमाम खोयी, इज़हार का मज़ा भी ।
4,,,,
खाकर क़सम जो करते, वादे हुए पुराने ,
अब वक़्त खा गया है, दीदार का मज़ा भी ।
5,,,,
फुरसत नहीं किसी को ,दिन रात गम में डूबे,
फिर ‘नील’ क्यूँ न पूछे ,तकरार का मज़ा भी।
✍नील रूहानी ,,,11/08/2024,,,
( नीलोफ़र खान )