ग़ज़ल __आशिकों महबूब से सबको मिला सकते नहीं ,
#ग़ज़ल
1,,
आशिकों महबूब से सबको मिला सकते नहीं ,
जो मिली हमको मुहब्बत वो जता सकते नहीं। मतला
2,,
बाखुदा तहज़ीब अपनी , हम भुला सकते नहीं
गालियाँ दे के उन्हें दर पे बुला सकते नहीं । हुस्न ए मतला
3,,
कौन कहता है वो ज़ालिम है , बता मुझको ज़रा ,
वो मुनव्वर हैं मुकद्दर के , दिखा सकते नहीं।
4,,
मर्द – औरत से महकते हैं सभी रिश्ते यहाँ ,
इन चिरागों को कभी , हम भी बुझा सकते नहीं ।
5,,
उम्र ढलती है तो ढलने दो,जियो जी भर के सब,
ज़िंदगी अपनी युंही तुम भी मिटा सकते नही ।
6,,
शामियाना भी सजा रक्खा है शादी के लिए ,
रोज़ मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं । (गिरह)
7,,
शाख़ टूटेगी तो घर उजड़े , परिंदों का यहाँ ,
“नील” कह दो, आँधियों ! तुमको रुका सकते नहीं ।
✍️नील रूहानी ,,, 11/09/2024,,,
( नीलोफर खान )