ग़ज़ल _ हाले दिल भी खता नहीं होता ।
बह्र …..2122-1212 – 22
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ग़ज़ल
1…
हाले दिल भी ख़ता नहीं होता !
ज़िक्र उनका ज़रा नहीं होता !!
2 …
ज़िन्दगी टूट कर कहाँ जाये !
उन से मरहला नया नहीं होता !!
3…
शर्म उरयानगी पे आती अब !
फिक्र आदिल ख़फ़ा नहीं होता !!
4…
वक़्त आखिर के साथ सब बदला !
दर्द अश्क़ों से भी नहीं होता !!
5….
ज़िम्मेदारी से भागता था वो !
चार वादा वफ़ा नहीं होता !!
6…
बे-वफ़ाई से हार कर बैठे !
‘नील’ सदमा बड़ा नहीं होता !!
✍नील रूहानी,,30/06/22🤔
( नीलोफर खान )💕