ग़ज़ल _ मैं रब की पनाहों में ।
आदाब सभी दोस्तों 🤲🙏💖
दिनांक…26/06/24💕
बह्र …221-1221 – 1221 -122,,💕
काफ़िया…. आ,,,,,रदीफ़…. ढूंड रही हूँ !
💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕
🌹 ग़ज़ल 🌹
1…
मैं रब की पनाहों में , क़ज़ा ढूंड रही हूँ !
दीदार की हसरत है , रज़ा ढूंड रही हूँ !!💕
2…
मुद्दत से नशे से ही ,निकल आये है यारों !
फिर होश गंवाने को ,नशा ढूंड रही हूँ !!💕
3…
जब खो दिए,तेवर व तबस्सुम के खज़ाने !
तब उनको लुभाने की ,अदा ढूंड रही हूँ !!💕
4…
बेताब हैं गुलशन के ,सभी फूल सुहाने !
दिन रात बहारों का , समां ढूंड रही हूँ !!💕
5
हम आये कहाँ पर हैं ,जहाँ घर न मिनारे !
पढ़नी है नमाज़े , मैं अज़ां ढूंड रही हूँ !!💕
6…
अब बख्श खुदा ‘नील’ जबीं को है झुकाये !
बरसों से दुआओं का , सिला ढूंड रही हूँ !!💕
✍नील रूहानी,,,,26/06/22,,,💖
( नीलोफर खान ) ,,,,💖