ग़ज़ल _ नहीं भूल पाए , ख़तरनाक मंज़र।
श्रद्धांजलि
दिनांक _ 31/10/2024,,,
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आज इंदिरा जी की पुण्य तिथि पर शब्दों के श्रद्धा सुमन पेश करती हूं ,,, ये चंद लाईनें अभी लिखीं हैं ,, श्रद्धांजलि हेतु 😢 वो मंज़र याद है , भूलता ही नहीं ,,, वो अमर होकर भी ,, आज भी हमारे बीच हैं ।
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ग़ज़ल
बह्र _ 122 122 122 122
1,
नहीं भूल पाए , ख़तरनाक मंज़र,,
दिखे थे सभी के जो हाथों में खंजर।
2,
लगी आग चारों तरफ़ खेत बंजर ,
तमाशा था बाहर नहीं कुछ था अंदर ।
3,
सभी देख कर रो पड़े थे अचानक ,
गिरे अश्क़ लाखों ही आँखों से झर झर ।
4,
जिसे देखिए भागता फिर रहा था ,
ख़बर छप गई जब,था अख़बार तर तर।
5,
सहम सा गया था ज़मीं आसमाँ भी ,
वतन का मुसाफ़िर चला जब सफ़र पर ।
6,
था ग़म इन्दिरा का बिछड़ने का सबको ,
क़लम रुक गई “नील” कांपी है थर थर ।
✍️नील रूहानी,,, 31/10/2024,,,,
( नीलोफर खान )