ग़ज़ल _ धड़कन में बसे रहते ।
आदाब दोस्तों 😢😢
दिनांक _ 22/06/2024,,,
बह्र ….. 221 1222 221 1222…..
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#ग़ज़ल
1,,
धड़कन में बसे रहते , गुमनाम हैं ये आँसू ,
छलके जो ज़यारत पर , ईनाम हैं ये आँसू ।
2,,
दस्तक से मिले हमको ,गुलफ़ाम हैं ये आँसू ,
ख्वाबों से निकलते , तब इलहाम हैं ये आँसू ।
3,,
चीख़ों से निकलकर जब, दिल दर्द मिटा देता,
दुनिया की नज़र में क्यूं , बस आम हैं ये आँसू ।
4,,
तकलीफ़ सही जाए , बे – दर्द ज़माने की ,
भर – भर के निकलते हैं , बदनाम हैं ये आँसू ।
5,,
मग़रूर नहीं होते , आशिक़ के दिवाने सब
एहसास की शिद्दत के , अंजाम हैं ये आँसू ।
6,,
छोटी सी ख़ता की थी , हर सिम्त इशारा था ,
त्रिया के चरित्र पर भी , नाकाम हैं ये आँसू ।
7,,
कितना भी सँभालो इन्हें बस में नहीं आते ,
क्या ‘नील’ , मुहब्बत के , पैग़ाम हैं ये आँसू ।
✍नील रूहानी…. 22/06/2024,,,,,
( नीलोफर खान )