ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
🌹💖🌹💖🌹
ग़ज़ल
बह्र ….2122 1122 1122 22,,,
******************************”***
1,,,
थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
खूबसूरत थी वो , इस वक्त अनूठी होती ।
2,,,
ये मुहब्बत है ,जो रिश्ते भी सभी कायम हैं ,
वरना आंगन की दिवारें भी कलूटी होती ।
3,,,
गर समझता ये बशर, कद्र जो रिश्तों की भी,
फिर कई बहने भी आपस में न रूठी होती।
4,,,
जब ज़मीं पर न ये सामान को ख़तरा होता ,
तब पुराने से घरों में भी न खूंटी होती ।
5,,,
क्यों दिखावे पे , ये इन्सान मरा जाता है ,
शान उसने जो बनाई थी , न झूठी होती ।
6,,,
“नील” बचपन की मुहब्बत थी अनोखी सबमें ,
कंकरी फिर ये पहाड़ों से , न बटोरी होती ।
✍️नील रूहानी,,, 17/08/2024,,,,,,
( नीलोफर खान)