ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
आदाब दोस्तों ,,,
दिनांक ,,,15/07/2022,,,
बह्र….1222,1222,1222,1222,,,,
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🍁 ग़ज़ल 🍁
🍁1,,,
कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
कहाँ है वोह सागर जो कि मौजों से बिछड़ जाये !!
🍁2,,,
हदों को पार करना ,नाम शेरो शायरी है बस !
कहाँ तक़दीर वो है ,जो मिटाने से बिगड़ जाये !!
🍁3,,,
ज़माने ने सिखाया है , भरोसा छोड़ दो यारों !
यक़ीं जब टूटता है तो ,कहाँ से फिर पकड़ जाये !!
🍁4,,,
शरारत और शोखी में बहुत ही फर्क़ होता है !
न जाने कौन सी तामीर , बनते ही रगड़ जाये !!
🍁5,,,
मुहब्बत ‘नील’ से बढ़ कर ,नहीं होती है दुनिया में !
किसी की बात समझे वो नहीं , यूँ ही अकड़ जाये !!
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✍नील रूहानी..15/07/22,,,,🍁
( नीलोफ़र खान ),🍁
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