ग़ज़ल _नसीब मिल के भी अकसर यहां नहीं मिलता ,
आदाब दोस्तों 🌹🥰 एक ताज़ा ग़ज़ल
दिनांक _ 19/07/2024,,,
बह्र _ 1212 1122 1212 22,,,
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#ग़ज़ल
1,,
नसीब मिल के भी अकसर यहां नहीं मिलता ,
वो चाहतों का समन्दर , यहां नहीं मिलता। मतला
2,,
वफ़ा के नाम पे देते हैं ज़ख्म ही आख़िर ,
गुलाब, इत्र व अंबर , यहां नहीं मिलता ।
3,,
बहादुरी में जिसे जानता ज़माना था
तलाश कर लो सिकंदर यहां नहीं मिलता ।
4,,
ग़रज़ जो आए वो मतलब भी साथ लाए है ,
यही तो ग़म है , क़लंदर यहां नहीं मिलता ।
5,,
ख़फ़ा ख़फ़ा सा दिखे आज हर बशर क्यूं कर ,
उदास “नील” को परवर यहां नहीं मिलता ।
✍️नील रूहानी ,,, 19/07/2024
( नीलोफर खान)
शब्दार्थ ____
अंबर _ सुगंध ,
सिकंदर _ मनुष्य का रक्षक; योद्धा ।
ग़रज़ _ तीव्र इच्छा ,,
कलंदर _ सूफ़ी संत ,
परवर _ रक्षा करने वाला ,