ग़ज़ल _ मुझे मालूम उल्फत भी बढ़ी तकरार से लेकिन ।
ग़ज़ल = ( 24 )
बह्र — 1222 1222 1222 1222
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
काफिया — आर // रदीफ़ — से लेकिन
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ग़ज़ल
1,,
मुझे मालूम उल्फ़त भी, बढ़ी तकरार से लेकिन ,
मिली हिम्मत हमेशा यार अपनी हार से लेकिन ।
2,,
पहुुंच से दूर है यारा ,चली जाती हुं फिर भी मैं ,
मिला है लुत्फ़ भी हमको उसी दीवार से लेकिन ।
3,,
चुभे जब बात कोई भी , न घबराना, न टकराना,
ठहरकर तुम सबक़ लेना ,वहीं पर खार से लेकिन ।
4,,
बनाया जो सुई से , खूबसूरत वो बना हमसे ,
नहीं बनता कभी भी काम वो औज़ार से लेकिन ।
5,,
अजब गुस्सा तुम्हारा है , ज़हन भी आसमां पे है,
करोगे क्या बताओ तो ,ये तुम हथियार से लेकिन ।
6,,
हकीकत ये नहीं यारों,जो तुम समझा रहे हमको ,
सभी को दर्द मिलता है , हमेशा प्यार से लेकिन ।
7,,
कभी फ़ुरसत से आकर बैठ जाओ मशवरा कर लो ,
सभी मसले सलझते “नील” के इज़हार से लेकिन ।
✍️नील रूहानी ,,,20/05/2024,,,,,,,,,,,🥰
( नीलोफर खान ,स्वरचित )