ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 12 )
बह्र _ 122-122-122-122
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
काफ़िया _ ई /// रदीफ़ _ ने ,
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ग़ज़ल
1,,
दिवाना बना कर , रखा चांदनी ने ,
मुहब्बत सिखा दी , मुझे भी किसी ने ।
2,,
बड़ा शौक़ था , चांद तारों में मिलना ,
कराई मुझे सैर , फ़लक की परी ने ।
3,,
कभी भी जिसे हमने, समझा नहीं था
मुझे ज़िंदगी दी है , उसकी हँसी ने ।
4,,
करम से हुए , घर के हालात बेहतर ,
सताया था उसको ,बहुत मुफ़लिसी ने ।
5,,
जिसे दुश्मनों ने , ही गुमराह रक्खा,
उसे राह दिखलाई , फिर दोस्ती ने ।
6,,
ये बारिश बनी खूब , रहमत खुदारा,
पिया आज पानी भी , प्यासी नदी ने ।
7,,
मुझे हिम्मते बख़्श , जीना सिखाया ,
दिया हौसला खूब , मौला अली ने ।
8,,
छिपा कर रखा था, जो बरसों बरस तक ,
वही राज़ खोला है , चश्मे नमी ने ।
9,,
वो तन्हाइयों में ,जो खोई तो खोई ,
शिकायत न की , “नील” की बेबसी ने ।
✍️नील रूहानी,,, 18/05/2024,,,,
( नीलोफर खान , स्वरचित )