ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 4 )
बह्र 221 1222 221 1222
मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन
काफ़िया: आले ///// रदीफ़: हैं
ग़ज़ल
1,,
दुनिया में मुहब्बत के , हर ओर उजाले हैं ,
आँखों से उतर जाते ,जो आज रिसाले हैं ।मतला
2,,
क्यूं आते नहीं मिलने , क्यूं दूर बसे जाकर ,
अश्कों से भरी आँखें, लब पर भी तो नाले हैं ।
3,,
शादी ही तो की थी बस, दुश्मन वो बने बैठे,
इलज़ाम कई रक्खे , क्यों नाम उछाले हैं ।
4,,
क्यों ज़ुल्म हो औरत पर,क्यों छीन लिए हक़ भी ,
जीने का भी हक़ छीना, कैसे ये रिजा़ले हैं ।
5,,
सदमा वो लिए बैठी , गम जिस्म में दाख़िल था,
बस्ती के फरिश्ते ने , सब ज़ख़्म इजा़ले हैं ।
6,,
पागल हैं हवस में सब, सोचों पे पड़े पत्थर,
दुनिया में यही प्रलय, हर सिम्त छिनाले हैं ।
7,,
छोड़ो भी ये बातें अब, कुछ और बताओ तुम,
जब चांद में हाला है , दिल गम के हवाले हैं ।
8,,
दिल से जो करे पूजा ,विश्वास न भटके जब ,
तब थाल सजा जाना , रौशन ये शिवाले हैं ।
9,,
आसान नहीं होता , दुश्मन को फ़ना करना ,
सरहद पे वही रहते ,जो लोग जियाले हैं ।
10,,
क्यों पार किया उनको ,आए हैं जो साहिल पर,
मज़लूम बिचारे थे , अब “नील” सम्हाले हैं ।
✍️नील रूहानी ,,,, 28/01/2024,,,
( नीलोफर खान,, स्वरचित )
शब्दार्थ __
रिजा़ले का अर्थ / नीच , कमीने
इजा़ले का अर्थ / निराकरण , खात्मा
हाला// चांद का कुंडल,,,