ग़ज़ल
दाग अपना बशर छिपाता है,
दूसरों को गलत बताता है ।
चल रहा चाल वो छिपा कर के,
ख़ौफ़ रब का कभी न खाता है।
कौन सुनता शरीफ की दास्ता,
बात अपनी बड़ी सुनाता है।
आग चुप चाप से लगाई है,
अब तमाशा खड़ा बनाता है।
हम शिकायत करें कहां जा कर,
जग नसीहत हमें सुनाता है ।
वासता ना रखो किसी से अब,
ये जमाना यही बताता है ।
मुँह घुमा के निकल गया”सीमा”
दाव कैसे हमें दिखाता है ।
सीमा शर्मा