ग़ज़ल
जाने कैसी ये बेक़रारी है
मेरी,मुझसे ही राज़दारी है,
तुम जिसे झूठ मेरा कहते हो
वो मेरी सच्ची अदाकारी है,
जबसे दुश्मन हुए हैं दोस्त मेरे
मेरी अपने से जंग जारी है,
अलविदाई की रस्म हो जाए
ये मेरी आखिरी बिमारी है,
ज़र्द बिस्तर, उदास तकिया है
चादरों पर चढ़ी खुमारी है,
आज की शब,कटे,कटे न कटे
नींद ,आँखों पे आज भारी है।