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11 Mar 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

कौन सा ये मोड़ जाने ज़िंदगी में आ गया
ग़म का साया क्यूं मेरी हर इक खुशी में आ गया,

मैं अँधेरों से भला,लड़ती रही क्यूं अब तलक
रहनुमाई करने वाला रौशनी में आ गया,

जो सदा रंगीन कपड़ों में मिला करता मुझे
क्या हुआ, कैसे वो इतनी सादगी में आ गया,

ज़ब्त करके रखा था जिस सच को अपनी जान में
वो न जाने कैसे मेरी डायरी में आ गया

दो निवाले ले के वो बैठा ही था खाने को कि
क्या करे मेहमान उसकी झोंपड़ी में आ गया,

जानवर की देह में आदम का अक्स आ गया
जानवर की शक्ल सा कुछ आदमी में आ गया।

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