ग़ज़ल
गीत हो या ग़ज़ल आप स्वर दीजिए,
साधना को नई एक लहर दीजिए।
साथ में बैठकर दो घड़ी बोल लें,
आप अपने हमें दो पहर दीजिए।
नींद को बेच कर मोल बैचेनी लें,
उलझनों का खुदा ना भँवर दीजिए।
नफरतों के जनाज़े उठे इसलिए,
दोस्ती में दुआ झोली भर दीजिए।
मांगती राह तोषी मगन हो चले,
हो सुहाना खुदा वो सफर दीजिए।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)