ग़ज़ल
हर इक धोखा मुझको ये समझाता है
तू कितनी जल्दी बातों में आता है
बाजारों में ढूंढ रहा रिश्ते नाते
बाजारों का अक्स सदा भरमाता है
क्यों करनी उम्मीद वफ़ा की दुनिया से
कौन जहां से साथ किसी के जाता है
जिसका भी हम हाथ थाम कर चलते हैं
पीठ पे ख़ंजर अक्सर वही चलाता है
मीठेपन से रही गुफ्तगू दुनिया से
अपने हिस्से केवल ज़हर ही आता है
कितनी रंगत बदल रहा आलम सारा
अपनी खातिर क्यूं मौसम थम जाता है।
अल्पना सुहासिनी