ग़ज़ल
ये नफरत का असर कब तक रहेगा
है सहमा सा नगर कब तक रहेगा
हक़ीकत जान जाएगा तुम्हारी
जमाना बेखबर कब तक रहेगा
बगावत लाजमी होगी यहाँ पर
झुका हर एक सर कब तक रहेगा
हैं इक दिन हार जाएगी ये लड़कर
हवाओं का ये डर कब तक रहेगा
जमीं पर लौट के आना ही होगा
बता आकाश पर कब तक रहेगा
यहाँ फिर लौट आएँगी बहारे
मेरा सूना सा घर कब तक रहेगा
लगा लो फिर सुनीता बेल बूटे
पुराना सा शज़र कब तक रहेगा
सुनीता काम्बोज
Sunitakamboj35@gmail.com