ग़ज़ल
ग़ज़ल
हसनैन आक़िब
तुम से गुलों ने रंग बदलना सीखा है।
परवानों ने हम से जलना सीखा है ॥
देर लगेगी तुम को सहारा बनने में
अभी तो तुम ने ख़ुद ही संभलना सीखा है ॥
घर की ज़िम्मेदारी जिस पर आन पड़ी
उस बच्चे ने अभी तो चलना सीखा है ॥
दिल की कहूँ तो शिकवा-ए-दुनिया करते हो
तुम ने कहाँ से बात बदलना सीखा है ॥
प्यार की है ये कौन सी मंज़िल, तुम ही कहो
देख के तुम को दिल ने मचलना सीखा है ॥