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1 Jun 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

नमन 🙏🌹
बह्र _ 122-122-122-122
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम
काफ़िया ——ओं // रदीफ़ ——की
💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕
गज़ल = 26
1,,,
क़दर किसको होती, यहाँ सीपियों की ,
मगर फ़िक्र रखते , सभी मोतियों की ।
2,,,
उतरने से पहले , ज़रा सा ठहर कर ,
कभी थाह लेना, भी गहराइयों की ।
3,,,
न अपनों को समझे ,न दुनिया को देखे ,
खता देख ली , बे – रहम मालिकों की ।
4,,,
भरे हैं खज़ाने , मगर बे – वजह के ,
मुहब्बत उन्हें , आज तक ज़ेवरों की ।
5,,,
हैं काहिल बहुत , काम उनसे न होते ,
बिगड़ती है हालत, उन्हीं मुफ्लिसों की ।
6,,,
दुआ जब भी माँगी, ये फरियाद की है,
खुदा खैर करना , मेरे दुश्मनों की ।
7,,,
अजब उसकी चाहत, वो दे सबको राहत ,
करें बात क्या , ‘नील’ के हौसलों की ।

✍नील रूहानी ,,, 01/06/24 ,,,
( नीलोफ़र खान )

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

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