ग़ज़ल -ख़बर से ही भरोसा जा रहा है
हलाहल यूं परोसा जा रहा है
ख़बर से ही भरोसा जा रहा है
रटायें आप जो रटता रहे वो
वही तोता तो पोसा जा रहा है
किया कुछ भी नहीं अब तक किसी ने
यहां बस भाग्य कोसा जा रहा है
गले से कल तलक हलवा न उतरा
गटागट अब समोसा जा रहा है
इशारे जो मुहब्बत के लिए थे
यहां तो ज़ाया बोसा जा रहा है
लबालब भर चुका है अब गले तक
जबरदस्ती ही ठोसा जा रहा है
✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’